Sunday, July 31, 2011

हिसाब- ए- मंजिल

जो चल पड़े हो तो कहीं पहुचोगे जरूर, पर पहुच कर एक बार देख लेना ....

की दामन में लगे कितने दाग हैं ,
की सीने में बाकी, अभी कितनी आग है,
की कारवां में कितने तुम्हारे साथ हैं ,
की सर पर रखे अभी कितने हाथ हैं,
की कितने घाव इस दिल पर लगे हैं,
की कितने इलज़ाम माथे पे सजे हैं,
की कब - कब अश्कों का सैलाब है आया,
की कब मन हौले से है गुनगुनाया ,
की कब ऐसा लगा की वक़्त यहीं थम जाये,
की देख लेंगे जो हो, हज़ार गम आये,
की कब उसके न होने की कमी खली हैं,
कब उसकी खुशबु लिए ये हवा चली है,
कब सोचा इस पल में तमाम उम्र जी लें,
टपकती शबनम को हथेली में ले ले, पी लें,
की कब आँखे मूँद कर उस वली को याद किया,
कितनों को ठेस दी, कितने दिलों को शाद किया,
की कितनी हसरतें पूरी होने का तुमको नाज़ है,
की तुममें बाकी क्या आम क्या मुमताज़ है,
सफ़र में कितने रकीब कितने अहबाब हुए,
ले कर चले जो उनमे मुकम्मल कितने ख्वाब हुए,
की कब हसीं तकदीर ने इस पाँव का बोसा लिया,
की कब कड़ी तदबीर ने भी राह में धोका दिया,
की कब गुनाहों में तूने शर्मिंदगी महसूस की,
की कब अहले-जहाँ ने तुझमें बंदगी महसूस की !!


जो चल पड़े हो तो कहीं पहुचोगे जरूर,
पर इन सबका ज़वाब लेकर मुझसे हिसाब कहना,
की तब अपनी ज़िन्दगी को आबाद कहना....!!


...उदयन ...



8 comments:

Unknown said...

superb....:)

lifes' like this.. never fair never right said...

speechless :) Classic..

Itee said...
This comment has been removed by the author.
Writefully Yours said...

Brilliant...! Great vocabulary and even greater emotions expressed...!
Welcome back UD :)

Rajeev said...


aap ka andaje byaan wah wah.....

surabhi said...

hats off sir..

Rj said...

2 saal baad. . der aaye par ati durust aye. . really good use of words, and very nicely written. I am glad you wrote this, and will be waiting for more.

Yash Gaikwad said...

kya baat hai mere sher!!!!!
Nice one!!!